Year - 2 Month - August 2022 Issue - 33
प्यारे बच्चों,
कोई व्यक्ति जब कोई पेड़ लगाता है तब वह एक ऐसा कार्य करता हे जिसके द्वारा भावी पीढ़ी लाभाव्नित होगी। और जिसके लिए भविष्य में लोग उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करेंगे। हम शत-सहस्त्र सुन्दर वृक्षों, उनके फल, पत्तों एवं फलों को देखकर खुश होते रहते हैं परन्तु कभी भी यह नहीं सोचते कि यदि ये वृक्ष न होते तो ये स्थान कितने उजड़, नीरव, नीरस एवं भयावह होते। यही भारत की स्वतंत्रता के संबंध में भी महसूस होता है
आज 15 अगस्त भारत की स्वतंत्रता दिवस का महान पर्व है। सन् 1947 में आज के ही दिन भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी। आज के दिन अपने दफ्तरों से , अपने स्कूलों से हमें छुट्टी मिलती है क्या हम सभी सोचते है कि स्वतंत्रता रूपी यह छायादार घना वृक्ष किस प्रकार इतना बड़ा हुआ है? इस पौधे को किसने लगाया था, किन लोगों ने इसकी देखभाल एवं रक्षा की तथा इसमें किन-किन प्रकारों के खाद-पानी दिए गये थें?
सूख जाए न यह पौधा आजादी का
खून से अपने इसलिए इसे तर करते हैं।
भारत की स्वतंत्रता के अंकुर 1857 में प्रकट हुए थे स्वतंत्रता के उस प्रथम संग्राम को हमारे विदेशी शासकों ने कभी सिपाही-विद्रोही कहा और कभी उसको गदर की संज्ञा प्रदान की तब से लेकर लगातार 90 सालों तक स्वतंत्रता के अंकुर की रक्षा ही नहीं की जाती रही। उसको अपने श्रम से रक्त, पसीनें से सींचकर विकसित भी किया जाता रहा। आजादी महोत्सव के दीवाने इस पौधे को विकसित होते देखकर मस्ती से झुम जाते हैं।
आजादी के दिवाने इन स्वतंत्रता सेनानियों का स्मरण करना, उनके प्रति नतमस्तक होना हमारा कर्तव्य होना चाहिए। स्वतंत्रता की लड़ाई अहिंसा के मार्ग पर चलकर लड़ी अवश्य गई थी, परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि इस रास्ते पर चलने के कारण हमारे सेनानियों के खून की नदियां नहीं बही थी।
स्वतंत्रता रूपी इस पेड़ को अपने रक्तदान से सींचकर बड़ा करने वाले बलिदानियों की एक लम्बी पंक्ति है नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, महारानी लक्ष्मीबाई, टीपू सुल्तान बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, एनी बेसेण्ट, एओ ह्यूम, महात्मा गाँधी, मोतीलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, जवाहर लाल नेहरू, आदि जिन क्रांतिकारी नवयुवकों ने इस पेड़ के रक्षा के लिए फॉंसी पर झुल गये।
उन्होंने अंग्रेजों की गोलियों का बन्दूकों का सामना किया उनके नाम तो हम आनंद के प्रवाह में प्राय: भूल ही जाते हैं उनमें भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, राज गुरू, मंगल पाण्डे, चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला, उधम सिंह आदि के नाम हमारी आंखों के सामने सहज भाव से आ जाते हैं। भारत के इन सपूतों ने अपने जीवन में एक ही तराना गाया था-
सर बांध कफनवा हो, शहीदों के टोली निली,
इन वीरों की एक ही माँग थी- मॉं मेरा रंग दे बसन्ती चोला।
इनका एक ही नारा था- इंकलाब जिंदाबाद
यह दिन वास्तव में शहीदों के स्मरण का अवसर है और साथ-साथ अपनी आत्मा को पवित्र करना का अवसर है। 15 अगस्त का दिन हमारा राष्ट्रीय त्यौहार है लेकिन हम केवल झण्डा फहराकर काम चला लेते हैं यह उन लोगों के प्रति कृतज्ञता का द्योतक है जिनके प्रयासों के नतीजों से हम आराम की आजादी का लाभ ले रहे हैं।
आज हम यह संकल्प करें हम शपथ ले कि हम अपने देश की स्वतंत्रता की रक्षा हमेशा करेंगे और यह हमारा कर्तव्य है और इस दिशा में लगातार में प्रयास भी करेंगे अपने देशकी प्रगति, विकास में हिस्सेदार बनेंगे। हमें यह बात को अपने जहन में हमेशा रखना चाहिए कि स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए निंरतर जागरूकता अंत्यंत आवश्यक होती हैं।
शहीदों की चिताओं पर लगेंग हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशॉं होगा।
धन्यवाद
तुम्हारा पथ-प्रदर्शक
धर्मेन्द्र कुमार
पुस्त्कायाध्यक्ष
Nice Post
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