💬Thought for the Day💬

"🍃🌾🌾 "Your competitors can copy your Work, Style & Procedure. But No one can copy your Passion, Sincerity & Honesty. If you hold on to them firmly, The world is yours..!! Follow your Principles." 🍃💫🍃💫🍃💫🍃💫🍃💫🍃

Reading Journal by KV JANAKPURI

Happy Guru Nanak Jyanti


गुरु नानक देवजी सिखों के पहले गुरु थे। अंधविश्वास और आडंबरों के कट्टर विरोधी गुरु नानक का प्रकाश उत्सव (जन्मदिन) कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है हालांकि उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को हुआ था। पंजाब के तलवंडी नामक स्थान में एक किसान के घर जन्मे नानक के मस्तक पर शुरू से ही तेज आभा थी। तलवंडी जोकि पाकिस्तान के लाहौर से 30 मील पश्चिम में स्थित है, गुरु नानक का नाम साथ जुड़ने के बाद आगे चलकर ननकाना कहलाया। गुरु नानक के प्रकाश उत्सव पर प्रति वर्ष भारत से सिख श्रद्धालुओं का जत्था ननकाना साहिब जाकर वहां अरदास करता है।

गुरुनानक बचपन से ही गंभीर प्रवृत्ति के थे। बाल्यकाल में जब उनके अन्य साथी खेल कूद में व्यस्त होते थे तो वह अपने नेत्र बंद कर चिंतन मनन में खो जाते थे। यह देख उनके पिता कालू एवं माता तृप्ता चिंतित रहते थे। उनके पिता ने पंडित हरदयाल के पास उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा लेकिन पंडितजी बालक नानक के प्रश्नों पर निरुत्तर हो जाते थे और उनके ज्ञान को देखकर समझ गए कि नानक को स्वयं ईश्वर ने पढ़ाकर संसार में भेजा है। नानक को मौलवी कुतुबुद्दीन के पास पढ़ने के लिए भेजा गया लेकिन वह भी नानक के प्रश्नों से निरुत्तर हो गए। नानक ने घर बार छोड़ बहुत दूर दूर के देशों में भ्रमण किया जिससे उपासना का सामान्य स्वरूप स्थिर करने में उन्हें बड़ी सहायता मिली। अंत में कबीरदास की 'निर्गुण उपासना' का प्रचार उन्होंने पंजाब में आरंभ किया और वे सिख संप्रदाय के आदिगुरु हुए।

सन् 1485 में नानक का विवाह बटाला निवासी कन्या सुलक्खनी से हुआ। उनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे। गुरु नानक के पिता ने उन्हें कृषि, व्यापार आदि में लगाना चाहा किन्तु यह सारे प्रयास नाकाम साबित हुए। उनके पिता ने उन्हें घोड़ों का व्यापार करने के लिए जो राशि दी, नानक ने उसे साधु सेवा में लगा दिया। कुछ समय बाद नानक अपने बहनोई के पास सुल्तानपुर चले गये। वहां वे सुल्तानपुर के गवर्नर दौलत खां के यहां मादी रख लिये गये। नानक अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ करते थे और जो भी आय होती थी उसका ज्यादातर हिस्सा साधुओं और गरीबों को दे देते थे।

सिख ग्रंथों के अनुसार, गुरु नानक नित्य प्रातः बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे। एक दिन वे स्नान करने के पश्चात वन में अन्तर्ध्यान हो गये। उस समय उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हुआ। परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा− मैं सदैव तुम्हारे साथ हूं, जो तुम्हारे सम्पर्क में आयेंगे वे भी आनन्दित होंगे। जाओ दान दो, उपासना करो, स्वयं नाम लो और दूसरों से भी नाम स्मरण कराओ। इस घटना के पश्चात वे अपने परिवार का भार अपने श्वसुर को सौंपकर विचरण करने निकल पड़े और धर्म का प्रचार करने लगे। उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही विदेशों की भी यात्राएं कीं और जन सेवा का उपदेश दिया। बाद में वे करतारपुर में बस गये और 1521 ई. से 1539 ई. तक वहीं रहे।

गुरु नानक देवजी ने जात−पांत को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए 'लंगर' की प्रथा शुरू की थी। लंगर में सब छोटे−बड़े, अमीर−गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में उसी लंगर की व्यवस्था चल रही है, जहां हर समय हर किसी को भोजन उपलब्ध होता है। इस में सेवा और भक्ति का भाव मुख्य होता है। नानक देवजी का जन्मदिन गुरु पूर्व के रूप में मनाया जाता है। तीन दिन पहले से ही प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। जगह−जगह भक्त लोग पानी और शरबत आदि की व्यवस्था करते हैं। गुरु नानक जी का निधन सन 1539 ई. में हुआ। इन्होंने गुरुगद्दी का भार गुरु अंगददेव (बाबा लहना) को सौंप दिया और स्वयं करतारपुर में 'ज्योति' में लीन हो गए।गुरु नानक जी की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान और सत्य है। वह सर्वत्र व्याप्त है। मूर्ति−पूजा आदि निरर्थक है। नाम−स्मरण सर्वोपरि तत्त्व है और नाम गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत−प्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएं दीं जो इस प्रकार हैं−

1. ईश्वर एक है। 

2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो। 

3. ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है। 

4. ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। 

5. ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए। 

6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं। 

7. सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए। 

8. मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। 

9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। 

10. भोजन शरीर को जि़ंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ−लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।

Guru Nanak Jayanti by KV JANAKPURI

Annual Panel Inspection

                                                 Annual Panel Inspection

PM SHRI Kendriya Vidyalaya Janakpuri 

1st & 2nd Shift
23.11.2023

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On 23.11.2022 ( Thursday) the Annual Panel Inspection of PM SHRI KV Janakpuri is going to be held by the galaxy of intellectuals. Through the Annual Inspection, we learn many new things with the help of suggestions given by the observers. This inspection is different from the last three years' inspections as the teaching-learning has gone Online because of COVID-19. That was a challenge for the teachers and the Taught. 

Now Again We are offline and the Annual panel Inspection is offline.

"It is a time to inspire and to be inspired"

Kendriya Vidyalaya Janakpuri Delhi 2nd Shift welcomes respected Asst. Commissioner Mr. K C Meena and all the inspecting team members will inspect our Vidyalaya under her great supervision. Details of the Inspecting teams are:

Sr. No.    Name of the members of                 Designation & Name of KV    

                      Inspecting Team-

  1. NAME DESIGNATION & SCHOOL NAME
    1. Sh. V. K Yadav   Principal, KV Chhabala
    2. Sh Haripad Das      Principal, KV Rangpuri
    3. Smt Rashmi Shukla
    4. Sh Navendu Parasar
           Principal, KV SPG Dwarka
        Principal KV Tughalakabad
    5. Sh. Shiva Kr. Sharma         Principal KV 4 Delhi Cantt
    6. Smt poonam SaloojaPrincipal KV Rohini Sec - 8
    7. Mr Pawan Sharma        VP, KV Vigyan Vihar Shift - 2
    8. Smt Anjalina BaddingHM  KV BSF Chhawala Cantt
    9. Sh Sujit Kumar    HM, KV INA
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पराक्रम की पराकाष्ठा ‘रेजांगला युद्ध’

 


यदि मुल्क की सियासी कयादत इच्छाशक्ति दिखाए तो विश्व की सर्वोत्तम भारतीय थलसेना सरहदों की बंदिशों को तोडक़र डै्रगन का भूगोल बदलने में गुरेज नहीं करेगी। अत: हमारे हुक्मरानों को समझना होगा कि शांति का मसीहा बनकर अमन की पैरोकारी करने के लिए एटमी कुव्वत से लैस सैन्य महाशक्ति बनना भी जरूरी है। रेजांगला दिवस पर 1962 के योद्धाओं को देश नमन करता है…

‘ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’ सल्तनत, मौसिकी पर सात दशकों तक हुक्मरानी करने वाली भारत की मारूफ गुलुकारा लता मंगेशकर ने 27 जनवरी 1963 को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में इस नगमे के जरिए सन् 1962 की भारत-चीन जंग के बलिदानी सैनिकों को श्रद्धांजलि पेश करके उस युद्ध की दर्दनाक दास्तां को भी बयान किया था। सुरों की मल्लिका मरहूम लता मंगेशकर का आंखें नम करने वाला यह तराना हर हिदोंस्तानी के जहन में आज भी सैनिकों के बलिदान का एहसास कराता है। चीन ने सन् 1950 में तिब्बत पर आक्रमण करके बुद्ध की तहजीब को कुचल कर वहां कब्जा जमाकर ‘माओ’ की लाल सल्तनत का पूर्ण निजाम नाफिज करके अपने प्राचीन दार्शनिक ‘संत जु’ के विस्तारवादी मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने की तस्दीक कर दी थी, मगर चीन के शातिर इरादों को भांपने में भारत असफल रहा था। सन् 1962 में भारत का मित्र देश सोवियत संघ ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ के मसले में उलझा था। उस वक्त चीन ने 20 अक्तूबर 1962 को 3488 कि. मी. लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करके भारत के लद्दाख, चुशूल तथा अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रों पर हमला करके युद्ध का ऐलान कर दिया था।

सैन्य इतिहास में हिमाचल के सपूतों ने रणभूमि में शौर्य के कई बेमिसाल शिलालेख लिखकर वीरभूमि को हमेशा गौरवान्वित किया है। 10 अक्तूबर 1962 को अरुणाचल क्षेत्र में मौजूद ‘त्सेंगजोंग पोस्ट’ पर चीनी सेना ने धावा बोल दिया था। हिमाचली शूरवीर ‘कांशीराम’ (9 पंजाब) अपने सैनिक साथियों सहित उस पोस्ट पर तैनात थे। 9 पंजाब के बहादुर जवानों ने चीनी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया था, मगर कांशी राम ने चीनी सैनिक का हथियार छीनकर उसी से ड्रैगन के कई सैनिकों को जहन्नुम की परवाज पर भेजकर उस हमले को नाकाम करने में अहम किरदार निभाया था। दुश्मन का हथियार छीनकर शत्रु सैनिकों को मौत के घाट उतारने की उस युद्ध की वो पहली घटना थी। रणभूमि में अदम्य साहस का परिचय देने वाले सूबेदार मेजर कांशी राम को सेना ने ‘महावीर चक्र’ से सरफराज किया था। उसी युद्ध में 27 अक्तूबर 1962 को लद्दाख सेक्टर की ‘छांगला चौकी’ पर ‘लाहौल स्पीति’ के रणबांकुरे हवलदार ‘तेंजिन फुंचोक’ (7 मिलिशिया) ने चीन के पांच सैनिकों को हलाक करके शहादत को गले लगा लिया था। युद्ध में असीम शौर्य के लिए सेना ने तेंजिन फुंचोक को भी ‘महावीर चक्र’ (मरणोपरांत) से अलंकृत किया था। उस युद्ध में हिमाचल के 131 सपूतों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। 1962 के भारत-चीन युद्ध में सबसे बड़ी जंग ‘रेजांगला’ के महाज पर लड़ी गई थी। दक्षिणी लद्दाख के चुशूल सेक्टर में भारतीय सेना की ‘13 कुमाऊं’ बटालियन तैनात थी। 13 कुमाऊं की 120 जवानों की ‘सी’ कंपनी रेजांगला के मोर्चे पर मुस्तैद थी। युद्ध में उस कंपनी का नेतृत्व मेजर ‘शैतान सिंह’ ने किया था।

18 नवंबर 1962 को समूचा भारत दीपावली का पावन पर्व मना रहा था, मगर उसी दिन चीन की ‘पीपल लिबरेशन आर्मी’ के हजारों सैनिकों ने आधुनिक हथियारों से लैस होकर रेजांगला पोस्ट पर आक्रमण कर दिया था। चूंकि 13 कुमाऊं के बहादुर सैनिक रेजांगला में चीनी सेना के चार हमलों को नाकाम कर चुके थे। चीनी लाव लश्कर की भारी तादाद व विषम परिस्थितियों के चलते 13 कुमाऊं की उस कंपनी को अपनी पोजीशन से पीछे हटने का आदेश भी मिल चुका था। लेकिन राजपूत योद्धा मेजर शैतान सिंह भाटी ने पीछे हटने के बजाय रेजांगला के मोर्चे पर ड्रैगन की मंसूबाबंदी को खाक में मिलाने का विकल्प चुना था। 18 हजार फीट की बुलंदी पर लड़ी गई रेजांगला की उस भीषण जंग में चीन के सैकड़ों सैनिकों को मौत के घाट उतार कर 13 कुमाऊं की ‘सी’ कपंनी के 120 में से 114 शूरवीरों ने मातृभूमि की रक्षा में सर्वोच्च बलिदान दे दिया, मगर दुश्मन के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया था। रेजांगला के रण में तनी हुई संगीनों के साथ बलिदान हुए 13 कुमाऊं के सैनिकों के शवों को युद्ध के तीन महीने बाद बर्फ पिघलने पर फरवरी 1963 में उठाया गया था। चीनी सेना की लाशों पर शूरवीरता का रक्तरंजित मजमून लिखने वाले मेजर शैतान सिंह का पार्थिव शरीर भी उनकी मशीनगन के साथ आक्रामक मुद्रा में ही मिला था। उंगलियां ट्रिगर पर मौजूद थीं। 18 नवंबर 1962 को रेजांगला में आखिरी गोली, आखिरी जवान व आखिरी सांस तक लड़ी गई भीषण जंग की शौर्यगाथा सैन्य इतिहास में एक नजीर बन गई। 1962 की जंग में चीन को सबसे गहरा जख्म देने वाले रेजांगला के नायक मेजर शैतान सिंह को युद्ध में उच्चकोटी के सैन्य नेतृत्व के लिए सर्वोच्च सैन्य पदक ‘परमवीर चक्र’ (मरणोपंरात) से नवाजा गया था।

रेजांगला युद्ध में चीनियों को हलाक करके वीरगति को प्राप्त हुए ‘सिंह राम’ व ‘गुलाब सिंह’ दोनों ‘वीर चक्र’ सगे भाई थे। रेजांगला की यूद्धभूमि पर 1962 के भारतीय योद्धाओं के शौर्य पराक्रम व बलिदान की खुशबू आज भी महसूस की जा सकती है। चीनी सेना ने रेजांगला युद्ध से वापस लौटते वक्त राइफलों की संगीने रणभूमि में गाडक़र 13 कुमाऊं के योद्धाओं के शौर्य को सलाम किया था। स्मरण रहे रेजांगला की जंग विश्व के दस सबसे बड़े सैन्य संघर्षों में शुमार करती है। रेजांगना युद्ध की हकीकत जानने के लिए बनी कमेटी में ‘रेडक्रॉस’ का एक अमेरिकी अधिकारी भी शामिल था। रक्षा मंत्रालय ने ‘रेजांगला युद्ध स्मारक’ का पुनर्निर्माण करवाकर पिछले वर्ष इसे रेजांगला के योद्धाओं को समर्पित किया था। भारतीय सेना ने सन् 1967 के ‘नाथुला सैन्य संघर्ष’ में चीन के 388 सैनिकों को हलाक करके डै्रगन का 1962 का भ्रम दूर कर दिया था, मगर 1962 की जंग के इंतकाम का अज्म आज भी सेना के जहन में बरकरार है। यदि मुल्क की सियासी कयादत इच्छाशक्ति दिखाए तो विश्व की सर्वोत्तम भारतीय थलसेना सरहदों की बंदिशों को तोडक़र डै्रगन का भूगोल बदलने में गुरेज नहीं करेगी। अत: हमारे हुक्मरानों को समझना होगा कि शांति का मसीहा बनकर अमन की पैरोकारी करने के लिए एटमी कुव्वत से लैस सैन्य महाशक्ति बनना भी जरूरी है। रेजांगला दिवस पर 1962 के योद्धाओं को देश शत-शत नमन करता है।

धर्मेन्द्र कुमार
पुस्ताकालायाध्यक्ष

रेजांगला के वीर सपूतों को शत शत नमन

 

रेजांगला का युद्ध: भारत के 120 जवानों ने मारे थे 1,300 चीनी सैनिक

18 नवंबर, 1962 को भारतीय सेना की 13 कुमाऊं रेजिमेंट ने इतिहास रचा था। इस सैन्य टुकड़ी के सिर्फ 120 जवानों ने चीन की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया था।

हाइलाइट्स

  • चीन के फौजियों की संख्या करीब 6000 थी जबकि 13 कुमाऊं के 120 जवान थे
  • चीनी सैनिकों के पास बड़ी मात्रा में तोप और गोले थे जबकि भारतीय सैनिकों के पास सीमित मात्रा थी
  • 13 कुमाऊं की इस टुकड़ी को भारतीय सेना की ओर से भी मदद नहीं मिल पाई

shaitan-singh
मेजर शैतान सिंह
देश का इतिहास भारतीय सैनिकों के साहस, बलिदान और बहादुरी के किस्सों से भरा है। ऐसे कई मौके आए जब मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों ने दुश्मनों को सिर्फ शर्मनाक हार ही नहीं दी बल्कि उनके नापाक मंसूबों को भी खाक में मिलाया। 56 साल पहले आज का दिन यानी 18 नवंबर, 1962 और लद्दाख की चुशुल घाटी में प्रवेश का रास्ता रेजांगला भारतीय सैनिकों के इस बहादुरी और बलिदान के जज्बे का गवाह बना था। भारतीय सेना की 13 कुमाऊं के 120 जवानों ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चीन के 1,300 सैनिकों को मार गिराया था।
युद्ध की पूरी कहानी
18 नवंबर, 1962 की सुबह। लद्दाख की चुशुल घाटी बर्फ से ढंकी हुई थी। माहौल में एक खामोशी सी थी। लेकिन यह खामोशी ज्यादातर तक नहीं रह सकी। 03.30 बजे तड़के सुबह घाटी का शांत माहौल गोलीबारी और गोलाबारी से गूंज उठा। बड़ी मात्रा में गोला-बारूद और तोप के साथ चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के करीब 5,000 से 6,000 जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशुल घाटी की हिफाजत पर तैनात थी। भारतीय सैन्य टुकड़ी में मात्र 120 जवान थे जबकि दूसरी तरफ दुश्मन की विशाल फौज। ऊपर से बीच में एक चोटी दीवार की तरह खड़ी थी जिसकी वजह से हमारे सैनिकों की मदद के लिए भारतीय सेना की ओर से तोप और गोले भी नहीं भेजे जा सकते थे। अब 120 जवानों को अपने दम पर चीन की विशाल फौज और हथियारों का सामना करना था। हमारे सैनिक कम थे और उनके पास साजोसामान की कमी थी लेकिन उनका हौसला बुलंद था। 13 कुमाऊं के वीर सैनिकों ने जो संभव हो सका, उतना ही सही जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी।
मेजर शैतान सिंह का बेमिसाल नेतृत्व
भारत की सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे जिनको बाद में परमवीर चक्र (पीवीसी) से सम्मानित किया गया। वह जान रहे थे कि युद्ध में उनकी हार तय है लेकिन इसके बावजूद बेमिसाल बहादुरी का प्रदर्शन कर रहे थे। उन्होंने दुश्मन की फौज के सामने हथियार डालने से मना कर दिया और असाधारण बहादुरी का परिचय दिया। मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी ने आखिरी आदमी, आखिरी राउंड और आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। 13 कुमाऊं के 120 जवानों ने चीन के 1,300 के करीब सैनिक मार गिराए लेकिन विशाल सेना के सामने वे कब तक टिकते। उनमें से 114 मातृभूमि की रक्षा के प्रति खुद को कुर्बान कर दिया। 6 जिंदा बचे थे जिसे चीनी सैनिक युद्ध बंदी बनाकर ले गए थे लेकिन सभी चमत्कारिक रूप से बचकर निकल गए। बाद में इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था।
आंखों देखा हाल
उस युद्ध में जो छह जवान बचे थे उनमें से एक मानद कैप्टन रामचंद्र यादव थे। वह 19 नवंबर को कमान मुख्यालय पहुंचे थे और 22 नवंबर को उनको जम्मू स्थित एक आर्मी हॉस्पिटल में ले जाया गया था। उन्होंने युद्ध की पूरी कहानी बताई। यादव का मानना है कि वह जिंदा इसीलिए बचे ताकि पूरे देश को 120 जवानों की वीरगाथा सुनाए। उनके मुताबिक, शुरू में चीन की ओर से काफी उग्र हमला किया गया। दो बार पीछे धकेले जाने के बाद उनका हमला जारी रहा। जल्द ही भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो गया और उन्होंने नंगे हाथों से लड़ने का फैसला किया। यादव ने नाईक राम सिंह नाम के एक सैनिक की कहानी बताई जो रेसलर थे। उन्होंने अकेले दुश्मन के कई सैनिक मार गिराए जब तक कि दुश्मन की ओर से उनके सिर में गोली नहीं मार दी गई।

अहीरवाल क्षेत्र के सैनिक
13 कुमाऊं के 120 जवान दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र यानी गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ जिलों के थे। रेवाड़ी और गुड़गांव में रेजांगला के वीरों की याद में स्मारक बनाए गए हैं। रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
रेजांग ला नाम क्यों पड़ा?
रेजांग ला जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में चुशुल घाटी में एक पहाड़ी दर्रा है। 1962 के युद्ध में 13 कुमाऊं दस्ते का यह अंतिम मोर्चा था। इसीलिए इसे रेजांग ला युद्ध के नाम से जाना जाता है।

Prayas - November 2023

        

Year - 4                                         Month - November 2023                                 Issue - 47

प्यारे बच्चों,

माता-पिता जो ऐसे प्रश्न पूछते हैं जो बच्चे के लिए अधिक प्रश्नों की ओर ले जाते हैं, आंतरिक प्रेरणा विकसित करने में अधिक सफल होते हैं। उदाहरण के लिए, एक माता-पिता जो एक बच्चे को “पुरस्कार” के रूप में एक हवाई जहाज कैसे काम करता है और संबंधित गृहकार्य को पूरा करने के लिए “इनाम” के रूप में एक विशेष खिलौना देता है, जिसमें हवाई जहाज के हिस्सों के बारे में प्रश्नों के उत्तर की आवश्यकता होती है।

माता-पिता की तुलना में कम प्रेरणा को प्रोत्साहित करेगा। जो बाल्सम विमान बनाकर बच्चे को यह पता लगाने में मदद करता है कि विमान कैसे काम करता है और बच्चे को इसे उड़ाने का अभ्यास करने देता है। यह माता-पिता पूछ सकते हैं कि विमान के उड़ान पैटर्न में क्या परिवर्तन होता है। बच्चा तब प्रयोग कर सकता है, खोज कर सकता है और नए प्रश्न और नई खोज उत्पन्न कर सकता है।

प्रेरणा, जैसा कि माता-पिता और शिक्षक जानते हैं, अक्सर सेटिंग, शामिल लोगों, कार्य और स्थिति के आधार पर भिन्न होती है। सीखने की अक्षमता वाला बच्चा एक बहुत ही अनिच्छुक पाठक हो सकता है जो विज्ञान असाइनमेंट पढ़ने या होमवर्क असाइनमेंट लिखने का विरोध करता है लेकिन विज्ञान वर्ग में पानी के वाष्पीकरण के बारे में शिक्षक के सभी शो को उत्सुकता से अवशोषित करता है। प्रत्येक शिक्षार्थी के लिए कुंजी उसे खोजना है जो प्रेरित करता है।

दुर्भाग्य से, अन्य कारक अक्सर एक छात्र की प्रेरणा को कम करने में हस्तक्षेप करते हैं। इनमें से कुछ कारक हैं:

विफलता का भय 

बच्चे काम पूरा करने से डर सकते हैं क्योंकि वे गलतियाँ करने से डरते हैं। वे अपने साथियों, शिक्षकों, भाई-बहनों या माता-पिता के सामने मूर्ख नहीं दिखना चाहते। सीखने की अक्षमता वाला एक बच्चा, उदाहरण के लिए, लगातार अद्भुत हास्य के साथ कक्षा को विचलित कर सकता है, लेकिन कभी भी असाइनमेंट पूरा नहीं करता है या कक्षा में किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देता है। हास्य उनकी पढ़ने की कठिनाई को कवर करता है और कक्षा में अधिकांश छात्रों के साथ-साथ अपने काम को पूरा करने में असमर्थता के लिए एक कवर-अप है।

चुनौती का अभाव

बच्चे स्कूल के काम से बोर हो सकते हैं। यह अच्छे कारण के लिए हो सकता है। एक प्रतिभाशाली छात्र एक कक्षा में “अनमोटिवेटेड” हो सकता है जो एक अवधारणा को बार-बार समझाता है / वह पहले से ही समझता है। सीखने की अक्षमता वाला बच्चा ऊब सकता है यदि किसी अवधारणा का अध्ययन करने के लिए उपलब्ध सामग्री बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमता से बहुत नीचे लिखी गई हो।

एलडी वाला बच्चा भी अप्रशिक्षित हो सकता है यदि यह स्पष्ट है कि शिक्षक एलडी के लेबल के आधार पर बच्चे को संभावित सफलता की कमी का श्रेय देता है। यदि शिक्षक, इस मामले में, छात्र को चुनौती नहीं देता है, तो छात्र शिक्षक की क्षमता के स्पष्ट आकलन को समझ सकता है और अधिक उत्तेजक सामग्री की मांग नहीं कर सकता है।

अर्थ का अभाव

एक छात्र बस यह मान सकता है कि स्कूल का काम महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि वह यह नहीं देख सकता है कि यह रोजमर्रा की जिंदगी से कैसे संबंधित है। यह एलडी वाले छात्र के लिए विशेष रूप से परेशान करने वाला हो सकता है। उदाहरण के लिए, विजुअल-मोटर समस्या वाले एक छात्र को सही उत्तर सुनिश्चित करने के लिए गणित की समस्याओं को व्यवस्थित करना बहुत मुश्किल हो सकता है।

विद्यार्थी हमेशा समस्या को गलत समझ लेता है क्योंकि दीर्घ योग प्रश्न के कॉलम आपस में मिल जाते हैं। वह छात्र जानता है कि कैलकुलेटर समस्या को एक सेकंड में सही ढंग से कर सकता है। छात्र को जोड़, भाग, या किसी अन्य गणित अवधारणा पर कक्षा का कोई अर्थ नहीं दिखाई देने की संभावना है।

भावनात्मक समस्याएं 

भावनात्मक समस्या वाले बच्चे को सीखने में कठिनाई हो सकती है क्योंकि वह कक्षा में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है। चिंता, भय, अवसाद या शायद घर से जुड़ी समस्याएँ हस्तक्षेप कर सकती हैं। एलडी वाले बच्चों में अक्सर सीखने की अक्षमता या अन्य संबंधित भावनात्मक पैटर्न की हताशा से संबंधित भावनाएं होती हैं जो स्कूल के काम के लिए प्रेरणा को सीमित करती हैं।

गुस्सा 

कुछ बच्चे माता-पिता के प्रति क्रोध की अभिव्यक्ति के रूप में स्कूलवर्क, या स्कूलवर्क की कमी का उपयोग करते हैं। इसे अक्सर निष्क्रिय-आक्रामक दृष्टिकोण कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा अकादमिक रूप से सफल होने के लिए अत्यधिक दबाव महसूस करता है, एक कारक जिसे छात्र नियंत्रित नहीं कर सकता है, तो छात्र चिल्ला सकता है या माता-पिता से बहस कर सकता है। बल्कि निम्न ग्रेड अर्जित किए जाते हैं। यह छात्र के नियंत्रण की सीमा के भीतर कुछ है। माता-पिता जितना अधिक प्रबलकों को नियंत्रित करने और उनकी संरचना करने की कोशिश करते हैं, ग्रेड उतना ही कम होता जाता है

ध्यान की इच्छा

दुर्भाग्य से कुछ बच्चे माता-पिता या शिक्षक का ध्यान आकर्षित करने के तरीके के रूप में शैक्षणिक सफलता की कमी का उपयोग करते हैं। आज की तेजी से भागती दुनिया में अक्सर माता-पिता उन बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं जो अच्छा कर रहे हैं। जो बच्चे घर आते हैं, अपना काम करते हैं, अपना गृहकार्य पूरा करते हैं, और अकादमिक रूप से उपलब्धि हासिल करते हैं, उन्हें केवल इसलिए नज़रअंदाज़ किया जा सकता है क्योंकि वे समस्याएँ पैदा नहीं कर रहे हैं।

जो बच्चे अभिनय करते हैं या जो स्कूल के काम में “असहाय” लगते हैं, वे अक्सर समर्थन और ध्यान प्राप्त कर सकते हैं। बच्चों के लिए ध्यान एक शक्तिशाली प्रेरक है। यह समय-समय पर समीक्षा करना महत्वपूर्ण है कि किस प्रकार के व्यवहार से घर या स्कूल में बच्चे का ध्यान आकर्षित होता है।

एलडी वाले बच्चे सीखने को एक कठिन और दर्दनाक प्रक्रिया पा सकते हैं। एलडी और/या एडीएचडी वाले छात्र अक्सर सीखने की स्थितियों में निराश होते हैं। स्मृति समस्याएं, निर्देशों का पालन करने में कठिनाइयाँ, सूचना के दृश्य या श्रवण धारणा में परेशानी, और कागज-पेंसिल कार्यों को करने में असमर्थता (अर्थात, रचनाएँ लिखना, नोट लेना, लिखित गृहकार्य करना, परीक्षा देना) और अन्य समस्याएँ सीखना बना सकती हैं।

वास्तव में “प्रेरक” काम। एलडी और/या एडीएचडी वाले बच्चे भी अक्सर सोचते हैं कि उनकी स्कूल की सफलता में कमी प्रयास के लायक नहीं है। चूंकि उनके ग्रेड अक्सर अन्य बच्चों द्वारा अर्जित किए गए ग्रेड से कम लगते हैं, वे स्कूल में खर्च किए गए प्रयासों और शैक्षणिक सफलता के बीच संबंध नहीं देख सकते हैं। इस प्रकार, उन्हें अकादमिक रूप से हासिल करने के लिए प्रेरित करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

माता-पिता कैसे मदद कर सकते हैं

माता-पिता छात्र प्रेरणा के केंद्र में हैं। एक नए स्कूल वर्ष की शुरुआत बहुत महत्वपूर्ण है। एलडी और एडीएचडी वाले बच्चे अक्सर बदलाव के साथ संघर्ष करते हैं। माता-पिता साल की अच्छी शुरुआत करने में मदद कर सकते हैं। घरेलू वातावरण को स्वीकार करने वाला गर्माहट प्रदान करें।

स्पष्ट निर्देश और प्रतिक्रिया दें।

सफलता के लिए एक मॉडल बनाएं

छात्र की ताकत पर निर्माण करें

स्कूल के काम को छात्र के हितों से जोड़ें

एक पारिवारिक संरचना बनाने में मदद करें जो लक्ष्य के प्रति लगातार काम को बढ़ावा दे।

छात्र कैसे और कब सीखता है, इस पर कुछ नियंत्रण रखने में उसकी मदद करें।

कक्षा या परिवार के अन्य छात्रों की तुलना में बच्चे के प्रदर्शन के बजाय बच्चे की प्रगति पर जोर दें।

अपने इच्छित व्यवहार को सुदृढ़ करना याद रखें।

प्रबलकों का बुद्धिमानी से उपयोग करें। याद रखें कि आंतरिक प्रेरणा सबसे अच्छा काम करती है। विस्तृत इनाम प्रणाली बनाने में समय व्यतीत करने के बजाय, जब संभव हो, बच्चे के हितों का पालन करें।

जय हिंद जय भारत..

अगले महीने कुछ और लेकर आपके सामने फिर आऊंगा ।

धन्यवाद

आपका पथ-प्रदर्शक 

धर्मेन्द्र कुमार 

पुस्तकालय अध्यक्ष