खेल शारीरिक क्रिया है, जो विशेष तरीके और शैली से की जाती है और सभी के उसी के अनुसार नाम भी होते हैं। भारतीय सरकार ने विद्यार्थियों और बच्चों के कल्याण और अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक कौशल को सुधारने के लिए विद्यालय और कॉलेजों में खेल खेलना अनिवार्य कर दिया है। बच्चों का किसी भी खेल में भाग लेना बहुत ही आवश्यक और महत्वपूर्ण है। विद्यार्थियों और बच्चों को घर पर अभिभावकों और स्कूल में शिक्षकों द्वारा प्रोत्साहित और प्रेरित करना चाहिए। यह बढ़ते हुए बच्चों के लिए बहुत ही आवश्यक है ताकि, उनमें अच्छी आदतें और अनुशासन विकसित हो, जो उनके वयस्क होने तक नियमित रहती है और अगली पीढ़ी में हस्तान्तरित होती है। खेल स्वास्थ्य और तंदरुस्ती को सुधारने और बनाए रखने, मानसिक कौशल और एकाग्रता स्तर के साथ ही सामाजिक और वार्तालाप या संवाद कौशल को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नियमित रुप से खेल खेलना एक व्यक्ति को बहुत सी बीमारियों और शरीर के अंगों की बहुत सी परेशानियों, विशेषरुप से अधिक वजन, मोटापा और हृदय रोगों से सुरक्षित करता है। बच्चों को कभी भी खेल खेलने के लिए हतोत्साहित नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
सभी समझते हैं कि, खेल और स्पोर्ट्स का अर्थ केवल शारीरिक और मानसिक तंदरुस्ती है। यद्यपि, इसके बहुत से छिपे हुए लाभ भी है। स्पोर्ट्स (खेल) और अच्छी शिक्षा दोनों ही एक साथ एक बच्चे के जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं। दोनों को ही स्कूल और कॉलेजों में बच्चों को आगे बढ़ाने और विद्यार्थियों का उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए समान प्राथमिकता देनी चाहिए। खेल का अर्थ न केवल शारीरिक व्यायाम है हालांकि, इसका अर्थ विद्यार्थियों की पढ़ाई की ओर एकाग्रता स्तर को बढ़ावा देना है। खेलों के बारे में आमतौर पर, कहा जाता है कि, “एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन रहता है”, जिसका अर्थ है कि, जीवन में आगे बढ़ने और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए तंदरुस्त शरीर में एक स्वस्थ मन होना चाहिए। शरीर का स्वास्थ्य पूरे जीवनभर स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है। लक्ष्य पर पूरी तरह से ध्यान केन्द्रित करने के लिए मानसिक और बौद्धिक स्वास्थ्य भी बहुत आवश्यक है। खेल खेलना उच्च स्तर का आत्मविश्वास लाता है और हमें अनुशासन सिखाता है, जो हमारे साथ पूरे जीवनभर रहता है। बच्चों को खेलों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और घर और स्कूली स्तर पर शिक्षकों और अभिभावकों की समान भागीदारी के द्वारा उनकी खेलों में रुचि का निर्माण करना चाहिए। स्पोर्ट्स और खेल बहुत ही रुचिकर हो गए हैं और किसी के भी द्वारा किसी भी समय खेले जा सकते हैं हालांकि, पढ़ाई और अन्य किसी में भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इनका बचपन से ही अभ्यास होना चाहिए। खेल और स्पोर्ट्स बहुत प्रकार के होते हैं और उनके नाम, खेलने के तरीके और नियमों के अनुसार होते हैं। कुछ प्रसिद्ध खेल, क्रिकेट, हॉकी (राष्ट्रीय खेल), फुटबॉल, बॉस्केट बॉल, वॉलीबॉल, टेनिस, दौड़, रस्सी कूद, ऊँची और लम्बी कूद, डिस्कस थ्रो, बैडमिंटन, तैराकी, खो-खो, कबड्डी, आदि बहुत से है। खेल शरीर और मन, सुख और दुख के बीच सन्तुलन बनाने के द्वारा लाभ-हानि को ज्ञात करने का सबसे अच्छा तरीका है। कुछ घंटे नियमित रुप से खेल खेलना, स्कूलों में बच्चों के कल्याण और देश के बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक बना दिया गया है।
भारत में हर वर्ष 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है इस दिन राष्ट्रीय खेल दिवस मनाने की मुख्य वजय है हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद जी का जन्म हुआ था। हॉकी जो के हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है मेजर ध्यानचंद इसी खेल का प्रसिद्ध खिलाड़ी रहा है। इसीलिए उनके जन्म दिवस के रूप में ही राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। नचंद जी का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। ध्यानचंद जी सन 1922 में सेना में भर्ती हो गए और चार वर्ष के पश्चात न्यूजीलैंड दौरे पर गयी भारतीय हॉकी टीम में ध्यानचंद जी का चयन हो गया। सन 1928 में जब भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक्स खेलने गयी जिसमें भारतीय टीम ने ध्यानचंद की अगवाई में ऑस्ट्रेलिया को 6-0 नीदरलैंड को 3-0 इसके इलावा भी अपने बाकी मुकाबलों में सभी टीमों को धूल चटाई और पहला ओलिंपिक स्वर्ण पदक जीता। इस जीत पर मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी विजार्ड ‘ के खिताब से सम्मानित किया गया। सन 1936 में बर्लिन ओलिंपिक शुरू हुआ जिसमें भारतीय हॉकी टीम ने मेजर ध्यानचंद की नेतुत्व में बेहतर प्रदर्शन करते हुए दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। भारतीय टीम ने बढिया प्रदर्शन दिखाते हुए जर्मनी की टीम को धूल चटाई इस महामुकाबले को जर्मन के तानाशाह हिटलर खुद इस मैच को देख रहे थे जिस हिटलर को तोपें , तलवारें नहीं डिगा पाई उसे हॉकी के जादूगर ध्यानचंद ने अपने खेल के दम पर सिर झुकाने के लिए मजबूर कर दिया। बड़े से बड़ा लालच देने के बाद भी ध्यानचंद ने हिटलर के हर प्रस्ताव को ठुकरा दिया और उन्होंने भारतीय फ़ौज और हॉकी की सेवा में अपना जीवन त्याग दिया। जिसके लिए सन 1956 में उन्हें पद्दम भूषण के खिताब से सम्मानित किया गया। सन 1948 में ध्यानचंद जी ने हॉकी से सन्यास ले लिया और 3 दिसम्बर 1979 को एक बिमारी के चलते उनका निधन हो गया।
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