💬Thought for the Day💬

"🍃🌾🌾 "Your competitors can copy your Work, Style & Procedure. But No one can copy your Passion, Sincerity & Honesty. If you hold on to them firmly, The world is yours..!! Follow your Principles." 🍃💫🍃💫🍃💫🍃💫🍃💫🍃

Netaji Subhash Chandra Bose


विश्व इतिहास में 23 जनवरी 1897 (23rd January 1897) का दिन स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का जन्म कटक के प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ तथा प्रभावती देवी के यहां हुआ था। उनके पिता ने अंगरेजों के दमनचक्र के विरोध में 'रायबहादुर' की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अंगरेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया। 

अब सुभाष अंगरेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर। आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- 'जब तुमने देशसेवा का व्रत ले ही लिया है, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना।' 
 
दिसंबर 1927 में कांग्रेस पार्टी (Congress) के राष्ट्रीय महासचिव (National secretary General) के बाद 1938 में उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष (National President) चुना गया। उन्होंने कहा था- मेरी यह कामना है कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के नेतृत्व में ही हमें स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना है। हमारी लड़ाई केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद से नहीं, विश्व साम्राज्यवाद से है। धीरे-धीरे कांग्रेस से सुभाष का मोह भंग होने लगा। 
16 मार्च 1939 को सुभाष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सुभाष ने आजादी के आंदोलन को एक नई राह देते हुए युवाओं को संगठित करने का प्रयास पूरी निष्ठा से शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में 'भारतीय स्वाधीनता सम्मेलन' के साथ हुई। 
5 जुलाई 1943 को 'आजाद हिन्द फौज' का विधिवत गठन हुआ। 21 अक्टूबर 1943 को एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों का सम्मेलन कर उसमें अस्थायी स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर नेताजी ने आजादी प्राप्त करने के संकल्प को साकार किया।
12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतीन्द्र दास के स्मृति दिवस पर नेताजी (Subhash Chandra Bose) ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा- 'अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है। आप मुझे खून दो, मैं आपको आजादी दूंगा।' यही देश के नौजवानों में प्राण फूंकने वाला वाक्य था, जो भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। 
16 अगस्त 1945 को टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और 18 अगस्त (18 August 1945) को स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाला, भारत मां के दुलारे नेताजी सुभाष चंद्र बोस सदा के लिए, राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर अमर हो गए। 

Study material and Sample Paper

 Click on this link to go ZIET CHANDIGARH LIBRARY BLOG.


 https://zietchandigarh.kvs.gov.in/e-learning




Prayas - january 2023

                                                      

Year - 2                          Month - January 2023                              Issue - 38

प्यारे बच्चों,

वैसे तो हर कार्य का अपना महत्व होता है लेकिन जिस काम को आसानी से किया जा सकता है उसके लिए कठिन मेहनत करना भी अपनी प्रतिभा के साथ बेमानी होता है वो कहते है ना जो दिमाग के तेज होते है वे हमेसा Smart Work का ही रास्ता चुनते है और यही उनका फैसला उन्हें सफलता के रास्ते पर ले जाती है और फिर वही उनके सफलता की एक नई कहानी भी बनती है.

तो चलिए एक छोटी सी कहानी जानते है जिससे आप सभी को Smart Work और Hard Work के अंतर को आसानी से समझ सकते है

एक बार की बात है एक जंगल में कुछ लोग मजदूरी पर लकड़िया काटने का काम करते है सबके काम के आधार मजूदरी मिलती थी जिससे वहा कुछ पुराने लोग जिन्हें लकड़ियों के काटने का अनुभव था वे बहुत ही अच्छे तरह से कार्य कर रहे थे जबकि वहा कुछ नये युवा भी काम पर लगे थे जो बहुत ही जोश के साथ कार्य करते थे.

लेकिन यह क्या पूरे दिन भर कार्य करने के बाद वह युवा लोग कुछ ही लकड़िया काट पाते थे जबकि पुराने अनुभवी लोगो का समूह उतने ही समय में बहुत ज्यादा लकड़िया काट लेते थे इससे उन युवाओ को बड़ा आश्चर्य होता था की हम सभी एक समान घंटे कार्य करते है जबकि ये लोग ज्यादा लकड़िया कैसे काट लेते है जिस कारण से वे उतने समय में ही ज्यादा पैसे भी कमाते थे.

फिर अपनी दुबिधा को दूर करने के लिए वे सारे युवा उन अनुभवी लोगो के पास गये और वही सवाल पूछा की हम सभी के लिए एक समान घंटे मिलते है लेकिन आप लोग उतने ही समय में कैसे ज्यादा मेहनत करके हम सभी से ज्यादा मजदूरी कमा लेते है.

तो उन अनुभवी लोगो के समझाया की इस दुनिया में किसी को काम को दो तरीके से किया जा सकता है पहला Hard Work और दूसरा Smart Work.

आप लोग हार्ड वर्क करते है ये अच्छी बात है और सफलता के लिए कठिन मेहनत करना जरुरी भी है लेकिन अगर अधिक से अधिक सफलता प्राप्त करना चाहते है तो थोडा हमे अलग सोचना चाहिए जिससे की उसी कार्य को Smart तरीके से भी किया जा सकता है.

एक तरफ जहा आप लोग 8 घंटे लगातार लकड़ी काटने का कार्य करते है जिससे की कुल्हाड़ी की धार कमजोर पड़ जाती है जिससे अधिक मेहनत करने पर भी कम ही लकड़ी काट पाते है.

जबकि हम लोग कुछ समय इन लकड़ियों की धार तेज करने में भी देते है जिससे की लकड़िया तेजी से और आसानी से कट सके जिसे हमे अपने अनुरूप मेहनत का फल भी मिलता है इसलिए हमे हार्ड वर्क के साथ साथ Smart Work पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे की हमारा वह काम और भी आसान हो सकता है.

अब उन युवाओ को समझ आ चुका था की एक तरफ जहा शारीरिक ताकत के बल पर मेहनत कर रहे थे और यही यदि वे थोड़ा दिमाग भी लगाते तो उनका कार्य और भी  आसान हो सकता था इस तरह अब उन्हें कठिन मेहनत और Smart Work के बीच का फर्क समझ आ चुका था

कहानी से मिलने वाली शिक्षा

तो देखा आपने किस प्रकार यदि आप Hard Work करते है लेकिन थोडा सा दिमाग लगाते हुए उसी कार्य को स्मार्ट तरीके से Smart Work करते है वही काम बहुत आसान हो जाता है इसलिए आज के ज़माने में नये नये टेक्नोलॉजी आते जा रहे है ऐसे हम अपने कार्य को और भी आसान बना सकते है तो जरूरत होती है बस अपने दिमाग का उपयोग करते हुए उन कार्यो को करना

तो ऐसे में यदि हमे सफलता के पथ पर आगे बढना है तो हमे कठिन मेहनत के साथ दिमाग का भी उपयोग करना चाहिए की कैसे हम अपने कार्यो को करे की वह कार्य और भी आसान हो जाये,

इस माह इतना ही... अगले माह कुछ और…

नव वर्ष की शुभकामनाएं।

धन्यवाद

आपका पथ-प्रदर्शक 

धर्मेन्द्र कुमार 

पुस्तकालयाध्यक्ष


Happy New Year 2023

 

Happy New Year 

नव वर्ष भारत में ग्रेगोरी कैलेण्डर के अनुसार 1 जनवरी को माना जाता है। यह दिन विश्व में हर किसी व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण अवसर से भरा होता है। भारत के साथ-साथ विश्व के सभी देश नए साल के शुरुवात पर जश्न मनाते हैं और अपने प्रियजनों के साथ मिल कर इस दिन का मज़ा उठाते हैं।

लोग इस दिन गाना गाते हैं, नाचते हैं, तरह-तरह के खेल खेलते हैं, पार्टियों में जाते हैं, फ़िल्में देखने जाते हैं। शहर से लेकर गाँव तक सभी जगह लोग पिकनिक मनाने जाते हैं। 31 दिसम्बर की रात के 12 बजे, नए साल से एक दिन पहले लोग जश्न मनाते हैं खूब सारे पटाखे भी फोड़ते हैं। लोग इस दिन की शाम को न्यू ईयर ईव बोलते हैं।

नए साल के प्रथम दिन लोग एक दुसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं और कुछ लोग ग्रीटिंग कार्ट देते हैं, गिफ्ट देते हैं और साथ मिल कर पार्क में घूमने भी जाते हैं। इस दिन टेलीविज़न पर मीडिया चैनल वाले भी लोगों के द्वारा आयोजित तरह-तरह के प्रोग्रामों को टीवी पर टेलीकास्ट करते हैं। इस दिन हर कोई व्यक्ति जीवन में एक नई और अच्छी शुरुवात करने की सोचते हैं।

बड़े-बड़े शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर और चेन्नई में बड़े लाइव कॉन्सर्ट किये जाते हैं जिनमें बॉलीवुड के सितारे और मशहूर लोग एकत्र होते हैं और कार्यक्रम में भाग लेते हैं। हजारों की तागाद में लोग उनके इन समारोह को देखने के लिए आते हैं। कुछ लोग अपने परिवार, मित्रों के साथ घर में मिलकर पार्टी मनाते हैं तो कुछ लोग बाहर घूमने जाते हैं।

यह सब समारोह बस इसलिए होते हैं ताकि हम बीते हुए साल को हँसते-हँसते विदा कर सकें और हँसते-हँसते ढेर सारी खुशियों, उमंगो और नयी आशाओं के साथ नए वर्ष का स्वागत कर सकें।

भारत में  ग्रेगोरियन कैलंडर के 1 जनवरी को सभी सरकारी दफ्तर, व्यापार खुले रहते हैं और सभी परिवहन की सुविधा उपलब्ध होती है। ऐसे समय में ज्यादातर मेट्रो शहर में सुरक्षा के पैमानों को बढ़ा दिया जाता है क्योंकि ऐसे समय में ज्यादा भीड़ के कारण बहुत सारी दुर्घटनाएं होने की सम्भावना होती है।

नए वर्ष के आगमन के दिनों में गोवा जैसे स्थानों में विश्व भर से पर्यटक आते हैं ऐसे में सुरक्षा की जरूरत बहुत ज्यादा होती है। परंतु हाल ही में हुए कोरोना वायरस इन्फेक्शन (COVID19) के बाद पर्यटन और पार्टी में कई हद तक रोक लगाई गई गई है।

परंतु हाल ही में अब कोरोना के वैक्सीन के आने के बाद नाव वर्ष में फिर से खुशियां लौट आएंगी और हम सब उत्साह के साथ नव वर्ष का जश्न मनाएंगे।

परंपरागत रूप से नए वर्ष को 1 मार्च को मनाया जाता है पर अधिक धार्मिक महत्व होने के कारण 1 जनवरी को इसका जश्न मनाया जाता है। भारत में पश्चिमी सभ्यता के बढ़ते चलन के कारण नव वर्ष का दिन 1 जनवरी, भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण उत्सव का दिन माना जाता है।

जिनका बीता साल अच्छा गया था वे लोग नाव वर्ष के दिन यह कामना करते हैं की उन्हें आने वाले साल में ऐसी खुशियाँ मिलती रहे। जिनके साथ बीते हुए साल में बुरा या दुखदाई हुआ वे ईश्वर से आने वाले साल में पिछले साल से बेहतर जीवन की कामना करते हैं।

इसका सही अर्थ यह है की इस दिन हर कोई एक नये उमंग के साथ एक नयी शुरुवात करने की सोचते हैं। यह वो समय होता है जब हम मुश्किलों का हल ढूँढ़ते हैं। यह वो समय है जब हम लोग कुछ अच्छा सोचते हैं अपने सफलता के लिए नया लक्ष देखते हैं।

इस दिन हर किसी व्यक्ति के मन में एक सकारात्मक भावना की लहर होती है। अपने पुराने नकारात्मक विचारों को हर कोई छोड़ कर कुछ अच्छा और सुनहरा करने की शुरुवात में लग जाते हैं।

अगर आप की भी कुछ लक्ष्य और कार्य हैं जो पीछे साल में नहीं हो पाए हैं और अगर आप उन्हें आने वाले साल में पूरा करना चाहते हैं तो आने वाले नव वर्ष के लिए संकल्प जरूर लें। अगर आप न्यू ईयर रेसोल्यूशन सेट करेंगे तभी आप सभी लक्ष्यों को नए साल में पूरा कर पाएंगे।

मैं इस नव वर्ष के शुरुवात में आप सभी को अपनी शुभकामनायें देना चाहता हूँ और कहना चाहता हूँ आप सभी को ढेर सारी खुशियाँ, अच्छे स्वास्थ्य के साथ सफलता मिले और आप सब तरक्की करें।



Prayas - December 2022

                                                            

Year - 2                          Month - December 2022                        Issue - 37

प्यारे बच्चों,

धीरे-धीरे हमलोग वर्ष के अंतिम माह में आ गए अगले महीने में इस वर्ष का लेखा -जोखा लिखेंगे 

 एक वीरान इलाक़े से छोटे पहलवान गुज़र रहा था। अचानक चार लठैतों ने घेर लिया।

"जो कुछ है निकाल दे... जल्दी!"

छोटे ने कहना नहीं माना, बस होने लगा घमासान। धुँआधार झगड़ा हुआ। पहलवान आकाश पाताल एक करवाने के बाद ही क़ाबू में आया। छोटे ने अपनी अंटी कसके मुट्ठी में दबा रखी थी, जो खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी। आख़िर जैसे-तैसे अंटी खुली और अंटी से निकली सिर्फ़ एक चवन्नी!

"एक चवन्नी ? वो भी सरकार ने अब बन्द कर दी है !" एक बोला।

"इतनी कोशिश करके तो ओलम्पिक में मैडल मिल जाता...और ये चवन्नी के पीछे लड़ रहा था ?" -दूसरा बोला।

चारों डक़ैत और छोटे पहलवान थक कर पस्त हो चुके थे।

"यार बीड़ी ही निकाल लो" एक डक़ैत बोला।

छोटे पहलवान ने बड़े सम्मान के साथ जेब से बीड़ी निकाल कर पेश की। अब सीन बदल चुका था...सबकी आपस में जान पहचान हो जाने पर एक डक़ैत ने पूछा-

"तुम्हारे पास सिर्फ़ एक चवन्नी थी और तुम इतनी भयानक लड़ाई लड़ रहे थे?"

इस पर छोटे ने अपने जूते में छुपाया हुआ हज़ार का नोट निकाल कर दिखाया

"ये देखो!"

"अरे! तुमको डर नहीं लग रहा कि हम तुमसे ये नोट छीन लेंगे?

"सवाल ही नहीं उठता!" छोटे ने विश्वास के साथ कहा।

"क्यों ?"

"देखो गुरु! तुम समझ गये हो कि जब मैं चवन्नी के लिए तुम चारों से इतना भीषण युद्ध कर सकता हूँ, तो फिर हज़ार रुपये के लिए तो पूरी बटालियन से लड़ जाऊँगा। इसलिए तुमको नोट दिखाने में कोई समस्या नहीं है।"

        छोटे पहलवान का लक्ष्य था अपनी अंटी की सुरक्षा करना। इससे कोई मतलब नहीं था कि अंटी में चवन्नी है या हज़ार रुपए और इस लक्ष्य के लिए उसने भीषण लड़ाई लड़ी। इस बार मैंने 'लक्ष्य' और 'साधना' पर कुछ लिखने की कोशिश की है...

        स्वामी विवेकानंद अक्सर देश-विदेश के दौरे पर रहते थे। जगह-जगह पर उनके भाषण हुआ करते थे। 14-15 वर्ष की कच्ची उम्र के नरेन (विवेकानंद का बचपन का नाम) पर, 1876-78 के समय भारत में पड़े भीषण अकाल का गहरा असर पड़ा। बाद में भी वर्षों तक अकाल की विभीषिका भारत में अपनी काली छाया से बर्बादी करती रही। विवेकानंद अकाल के समय ध्यान और प्रवचन छोड़ कर अकालग्रस्त लोगों की सहायता करने में लग जाते थे और दिन-रात उसमें लगे रहते थे। एक बार, उनके सम्पर्क के लोगों को एतराज़ हुआ, जिनमें से कुछ संन्यासी भी थे। वो चार-पांच लोग उनके पास आये और उनमें से एक नौजवान संन्यासी ने उनसे कहा-

"ये आप क्या कर रहे हैं ? स्वामी जी ! ना तो ये आपका लक्ष्य है और ना ही आपका कार्य। आपका लक्ष्य है भारत की संस्कृति से सम्बन्धित प्रवचन देना। सारे देश-दुनिया में उसे फैलाना और लोगों को जागृत करना। आपने तो ध्यान करना भी बंद कर दिया है।"

"अच्छा ठीक है... आज ध्यान ही करते हैं... तुम सही कह रहो हो, ध्यान करना आवश्यक है।" विवेकानन्द जी ने कहा

जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान संन्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए। वह एकदम उत्तेजित और परेशान हो गया। उसके साथ में जो तीन-चार लोग थे, वह भी एकदम से चौंक गए। वो खड़े हुए और कहने लगे-

"ये आप क्या रहे हैं ? आपने इस तरह से क्यों पीटना शुरू कर दिया ?"

इस पर स्वामी विवेकानंद ने कहा-

"क्या इन परिस्थिति में तुम ध्यान कर सकते हो ? जब मैंने डंडा उठाया तो तुम डंडे से ख़ुद को बचाने में लग गये। ठीक यही स्थिति मेरी है। जब मेरे देश में अकाल पड़ा हुआ है, लोग भूखो मर रहे हैं, यहाँ तक कि ग़रीब स्त्रियों ने अपने बच्चे बेच दिए, लोग भूख की वजह से अपने हाथ खा गये और तुम चाहते हो कि मैं अकाल राहत कार्य छोड़ कर ध्यान, योग और संस्कृति की बातें करूँ ? इस समय मेरा लक्ष्य, लोगों को अकाल से बचाना है और यही है सच्ची 'साधना'"

अपनी इन विलक्षणताओं के कारण ही स्वामी विवेकानन्द को आज सम्मानपूर्वक याद किया जाता है।

        साधक, साधना और साध्य; इन तीनों में क्या महत्त्वपूर्ण है ? लक्ष्य क्या होना चाहिए ? फल की इच्छा न करने के लिए गीता में क्यों लिखा है ?

साध्य वह लक्ष्य है, जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं। साधना उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जो कुछ आप कर रहे हैं, वो है। आपके क्रियान्वयन हैं, आपके प्रयास हैं और साधक, साधक आप हैं। क्या महत्त्वपूर्ण है इन तीनों में? हमेशा यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सबसे महत्त्वपूर्ण साधना होती है। लक्ष्य महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण आप भी नहीं हैं। महत्त्वपूर्ण है वह साधना। इस साधना के बल पर ही, आप कुछ रचना कर सकते हैं, कुछ ख़ास बन सकते हैं, महत्त्वपूर्ण बन सकते हैं। इसे समझा कैसे जाए?

एक कहावत है "या तो कुछ ऐसा करो कि लोग उस पर लिखें, या कुछ ऐसा लिखो कि लोग उसे पढ़ें"

Blockquote-open.gif जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान संन्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए। Blockquote-close.gif

        वास्तविक लक्ष्य क्या होता है ? सचिन तेंदुलकर जब खेलने जाते हैं, तो क्या लक्ष्य होता है ? बढ़िया खेलना, देश को जिताना या 100-200 रन बनाना ? यदि देश को जिताना लक्ष्य होता है, तो ध्यान खेल में नहीं लग सकता, 100 रन बनाने का लक्ष्य रहे, तब भी ध्यान खेल में नहीं लगेगा, खेल पर ध्यान देने के लिए तो एकाग्रता से उस गेंद को देखना होता है, जो गेंदबाज़ के हाथ से छूटती है और सचिन के बल्ले तक आती है। गड़बड़ी कहाँ होती है ? जब रनों की संख्या 90 से ऊपर पहुँचती है। इस स्थिति में लक्ष्य 100 रन बनाने का हो जाता है और खेल से ध्यान हट जाता है, फिर गेंद नहीं स्कोर-बोर्ड दिमाग़ में ऊधम मचाने लगता है। इस 90 और 100 के बीच आउट होने की संभावना बढ़ जाती है।

गीता का एक श्लोक है-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥

इस श्लोक का सीधा-सादा सा अर्थ है कि आपका लक्ष्य 'कर्म' होना चाहिए 'फल' नहीं।

        महाभारत के एक प्रसंग से हम सभी परिचित हैं, जिसमें द्रोणाचार्य ने एक चिड़िया, एक पक्षी की आँख भेदने के लिए सब पाण्डवों और कौरवों को बुलाया था। दूसरे राजकुमारों से भिन्न, अर्जुन ने कहा-

"मेरा ध्यान तो सिर्फ़ चिड़िया की आँख पर है और मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा।"

उस समय भी राजकुमारों को किसी परीक्षा में खरा उतरने के लिए पुरस्कृत किया जाता होगा। अर्जुन का ध्यान यदि परीक्षा की सफलता या उस पुरस्कार पर होता तो क्या निशाना सही लगता ? कोई आवश्यक नहीं है कि निशाना सही ही लगता।

अर्जुन का लक्ष्य था सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनना, इसलिए उसे चिड़िया की आँख ही दिखाई दे रही थी। यह सब घटा किस तरह होगा ? अर्जुन ने पूरी प्रक्रिया की... उसने अपने धनुष को उठाया होगा, फिर तूणीर में से एक बाण निकाला होगा, फिर धनुष पर रखा होगा, प्रत्यंचा खींची होगी, फिर लक्ष्य की ओर ध्यान दिया होगा, और तब बाण चलाया होगा। और उसके साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि उसने यह सब करने के लिए कितना अधिक अभ्यास किया होगा। इसके पीछे कितनी साधना छिपी हुई थी। केवल चिड़िया की आँख देखने से ही निशाना नहीं लग जाता बल्कि सही बात यह है कि अर्जुन ने बाण से लक्ष्य-भेद का इतना अधिक अभ्यास कर लिया था कि वह निशाना लगाते समय केवल लक्ष्य को ही देखता था।

        इसी में एक प्रसंग और आता है कि अर्जुन ने एक बार रात में खाना खाते हुए ये सोचा-

"अभ्यासवश जब मैं बिना देखे रात में खाना खा रहा हूँ। खाना खाना मेरे अभ्यास में है, इसलिए मैं बिना देखे ही थाली में से भोजन को हाथ से उठाता हूँ और मुँह तक ले जाता हूँ। कभी ऐसा नहीं होता कि भोजन आँख में, कान में या नाक में चला जाए, तो उसने सोचा कि रात में तीर चलाने का अभ्यास भी किया जा सकता है। इसलिए धनुष पर तीर रखने तक की प्रक्रिया के लिए अर्जुन को लक्ष्य से ध्यान हटाकर धनुष और बाण की ओर देखने की भी आवश्यकता नहीं थी।

        आपका लक्ष्य क्या है, यह सबसे महत्त्वपूर्ण है। यदि आप युद्ध में हैं, तो लक्ष्य दूसरे को हराना नहीं बल्कि ख़ुद जीतना होना चाहिए। यदि आपका लक्ष्य दूसरे को हारते हुए देखना है, तो आप योद्धा नहीं, एक साधारण से व्यक्ति हैं जो कि बदला लेना चाहता है। यदि ख़ुद को जीतते हुए देखना, आपका लक्ष्य है तो आप सचमुच योद्धा हैं और इतिहास आपको याद रखेगा। अब इसे ऐसे देखें-

        महात्मा गांधी और सरदार भगत सिंह का एक ही लक्ष्य था, लेकिन तरीक़े अलग थे। क्या था ये लक्ष्य ? अंग्रेज़ों को भारत से भगाना ? नहीं ऐसा नहीं था। उनका लक्ष्य था, भारत को आज़ाद कराना... स्वतंत्रता। इन दोनों बातों में बड़ा फ़र्क़ है। एक सकारात्मक है और एक नकारात्मक। अंग्रेज़ों को भगाना नकारात्मक है और स्वतंत्रता पाना सकारात्मक। लक्ष्य वही है जो सकारात्मक हो। छात्र जीवन में इस प्रकार की बातें अक्सर हमारे सामने आती हैं। कुछ छात्र लक्ष्य बनाते हैं पास होने का, कुछ बनाते हैं बहुत अच्छे अंक लाने का और जो सर्वश्रेष्ठ होते हैं उनका लक्ष्य होता है 'ज्ञानार्जन'।

        सिर्फ़ डिग्रियों से नौकरी मिलने का ज़माना अब ख़त्म हो रहा है। आज स्थितियाँ ये हो गई हैं कि बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने डिग्रियाँ देखना बन्द कर दिया है। वो उस फ़ाइल को उठाकर भी नहीं देखते जो आप इंटरव्यू में अपने साथ ले जाते हैं। वो सिर्फ़ आपसे बात करते हैं और कुछ दिन आपको कुछ काम या कोई प्रोजेक्ट दे देते हैं, जो आपको पूरा करके लाना होता है। इससे आपकी योग्यता की पहचान हो जाती है और नौकरी मिल जाती है। ये तभी सम्भव है, जब आपकी साधना पूरी रही हो, आपने पढ़ाई अच्छे ढंग से की हो। जो पढ़ाई केवल नम्बर लाने के लिए नहीं, बल्कि ख़ुद की योग्यता और जानकारी बढ़ाने के लिए की गई हो।

इस माह इतना ही... अगले माह कुछ और…

आने वाले नव वर्ष की शुभकामनाएं।

धन्यवाद

आपका पथ-प्रदर्शक 

धर्मेन्द्र कुमार  

prayas - November 2022

                                                                  

Year - 2                          Month - November 2022                        Issue - 36

प्यारे बच्चों,

प्रकृति कहिए या ईश्वर कहिए, उसने पृथ्वी पर जो कुछ भी पैदा किया उसमें एक उल्लास पूर्ण गति अवश्य दी। मनहूस उदासी या आडम्बरी गंभीरता किसी भी जीव में नहीं दी। यहाँ तक कि वनस्पति में भी एक उल्लास से भरी हुई विकास की गति होती है। सूरजमुखी का फूल सूर्य को ही तकता रहता है और सूर्य जिस दिशा में जाता है उसी दिशा में वह मुड़ जाता है। फूलों की बेल, सहारे तलाश करती रहती हैं और जैसे अपनी बाहें फैलाकर सहारे को पकड़ ऊपर बढ़ती जाती हैं।

 

आप सड़क से एक पिल्ला उठा लाइये। सारा दिन घर में धमा-चौकड़ी मचाए रहेगा। कहने का सीधा अर्थ यह है जिसे हम सभी जानते ही हैं कि जीवन का अर्थ ही उत्सव और उल्लास है। प्रत्येक मनुष्य का प्रत्येक बच्चा जन्म से ही नृत्य, गायन, वादन, चित्रकारी, मूर्तिकारी, खेल जैसी आदि प्रतिभाओं से परिपूर्ण होता है। जिज्ञासा से भरा खोजी स्वभाव प्रत्येक बच्चे का स्वाभाविक गुण होता है। यह स्थिति मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों में भी होती है। मैंने बड़े क़रीब से देखा है ऐसे बच्चों को जिनकी मानसिक क्षमता हटकर होती हैं और जिन्हें हम मानसिक रूप से अविकसित या विशिष्ट रूप से विकसित मानते हैं। इन बच्चों में भी प्रसन्नता और उल्लास का भाव भरपूर होता है।

 

समस्या तब शुरु होती है जब धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होने लगता है तो अधिकतर माता-पिता (या अन्य अभिभावक) उसकी इन प्रतिभाओं को बड़े गर्व के साथ समाप्त करने में लग जाते हैं। इसमें स्कूल भी अपनी भूमिका बख़ूबी निबाहता है। अधिकतर स्कूलों में शिक्षा जिस तरीक़े से दी जा रही है वह बेहद शोचनीय अवस्था है। पढ़ाई में सृजनात्मकता जैसा कुछ भी नहीं होता। उन्हें वह नहीं सिखाया जाता जोकि उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होगा और वे स्वयं अपनी सफलता का रास्ता चुन सकेंगे बल्कि उनको एक पारंपरिक तरीक़े की पढ़ाई दी जाती है जिससे वे कुछ नया करने की बजाय ख़ुद को किसी न किसी जॉब के लायक़ बनाने में लग जाते हैं।

 

महान विचारक जे. कृष्णमूर्ति ने कहा भी है कि स्कूलों में बच्चों को ‘क्या सोचा जाय सिखाने की बजाय कैसे सोचा जाय’ यह सिखाना चाहिए। इस आउटडेटेड उबाऊ शिक्षा पद्धिति के कारण बच्चों के भीतर की उमंग और उल्लास ख़त्म होने लगता है। ओढ़ी हुई गंभीरता मनहूसियत भरी उदासी उनका स्थाई स्वभाव बन जाता है। बच्चों को यह मौक़ा ही नहीं दिया जाता वे जान सकें कि उनमें कौन सी विशेष प्रतिभा है। बच्चों की मार्कशीट ही उनकी योग्यता की पहचान बन जाती है।

 

ज़रा बताइये कि मैंने कॅलकुलस, ट्रिगनोमॅट्री, वेक्टर, प्रॉबेबिलिटी आदि की पढ़ाई की… वह मेरे किस काम आ रही है… किसी काम नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि गणित मेरा पसंदीदा विषय था लेकिन मुझे उन विषयों या क्षेत्रों को छेड़ने का मौक़ा ही नहीं मिला जो मेरे प्रिय हो सकते थे या उनमें से कोई एक मेरा पॅशन बन सकता था।

 

व्यवसाय में पिता अपने वारिस को सिखाता है कि बेटा-बेटी जितनी ज़्यादा मनहूसियत भरी गंभीरता तुम ओढ़े रहोगे तुमको उतना ही बड़ा बिजनेसमॅन समझा जाएगा। सरकारी कार्यालय में चले जाएँ तो ऐसा लगता है कि यहाँ अगर ज़ोर से हँस पड़े तो शायद छत ही गिर पड़ेगी क्योंकि उस छत ने कभी हंसी की आवाज़ सुनी ही नहीं (सुबह-सुबह सफ़ाई कर्मचारी ही शायद हँसते हों)। आलम ये है कि ओढ़ी हुई गंभीरता एक संस्कृति बन चुकी है। अब न तो इस मनहूस संस्कृति को क्या नाम दिया जाय यह समझ में आता और इसको ख़त्म करने का उपाय ही।

 

एक सामान्य शिष्टाचार है कि किसी अजनबी से आपकी नज़र मिल जाय तो हल्का सा मुस्कुरा दें। यह शिष्टाचार यूरोपीय देशों में बहुत आम है। हमारे देश में यदि आप किसी अजनबी को देखकर मुस्कुरा गए और यदि वो लड़की हुई तो सोचेगी कि आप उसे छेड़ रहे हैं और यदि कोई लड़की किसी अजनबी लड़के को देखकर मुस्कुरा गई तो लड़का समझेगा कि यह प्रेम का निमंत्रण है।

 

क्या आपको नहीं लगता कि ये सब बातें स्कूल में सिखाई जानी चाहिए? मेरी आज तक यह समझ में नहीं आया कि स्कूल में बच्चों को घर का काम करना क्यों नहीं सिखाया जाता। जैसे; चाय-बिस्किट-नाश्ता बनाना, कपड़े तह करना, कपड़े इस्तरी करना, शारीरिक सफ़ाई, माता-पिता से व्यवहार, कील-चोबे लगाना, कपड़ों में बटन लगाना, छोटे बच्चे की देख-भाल करना, बाग़वानी, आदि-आदि। इसके अलावा ‘डू इट योरसेल्फ़’ की बहुत सी चीज़ें सिखाई जानी चाहिए, ज़रूरतमंद लोगों की मदद क्यों, कब और कैसे करें यह उनके स्वभाव में आना चाहिए। यह सब लड़की-लड़कों को समान रूप से सिखाना चाहिए। खाना बनाना लड़कों को भी आना चाहिए। कामकाजी पति-पत्नी के घर में दोनों ही लगभग सभी काम करते हैं। ये सब बच्चों को स्कूल में सिखाया जाना चाहिए। कुछ व्यावहारिक प्रयोगों द्वारा और कुछ विडियो दिखाकर।

 

यह तो ठीक है कि हम बच्चों को महान व्यक्तियों के बारे में बताकर उन्हें अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करते हैं लेकिन बच्चों को यह भी बताना चाहिए कि छोटे बच्चे घर के कामों में अपनी माता-पिता की मदद करके भी महान बनते हैं। उनको पता होना चाहिए कि यदि वे काम पर जाने से पहले अपने पिता की साइकिल-बाइक-कार को पोंछ देंगे तो यह कितना बड़ा काम होगा। रसोई में मां का हाथ बटाएँगे तो उनके द्वारा किया काम कितना महत्वपूर्ण होगा।

 

ज़रूरत तो इस बात की है कि प्रत्येक स्कूल, कॉलेज में कुछ विषय अलग से पढ़ाए जाने चाहिए। जिनसे छात्राओं और छात्रों को अच्छा इंसान बनने में मदद मिले। ‘संस्कृति’ एक अलग विषय होना चाहिए और इस विषय के अधीन सब-कुछ सिखाना चाहिए।

धन्यवाद

आपका पथ-प्रदर्शक 

धर्मेन्द्र कुमार 

पुस्त्कायाध्यक्ष 



Annual Panel Inspection

                                                Annual Panel Inspection

PM SHRI Kendriya Vidyalaya Janakpuri 

1st & 2nd Shift
on 23.11.2023

On 23.11.2022 ( Thursday) the Annual Panel Inspection of PM SHRI KV Janakpuri is going to be held by the galaxy of intellectuals. Through the Annual Inspection, we learn many new things with the help of suggestions given by the observers. This inspection is different from the last three years' inspections as the teaching-learning has gone Online because of COVID-19. That was a challenge for the teachers and the Taught. 

Now Again We are offline and the Annual panel Inspection is offline.

"It is a time to inspire and to be inspired"

Kendriya Vidyalaya Janakpuri Delhi 2nd Shift welcomes respected Asst. Commissioner Mr. K C Meena and all the inspecting team members will inspect our Vidyalaya under her great supervision. Details of the Inspecting teams are:

Sr. No.    Name of the members of                 Designation & Name of KV    

                      Inspecting Team-

  1. NAME DESIGNATION & SCHOOL NAME
    1. Sh. V. K Yadav   Principal, KV Chhabala
    2. Sh Haripad Das      Principal, KV Rangpuri
    3. Smt Rashmi Shukla
    4. Sh Navendu Parasar
           Principal, KV SPG Dwarka
        Principal KV Tughalakabad
    5. Sh. Shiva Kr. Sharma         Principal KV 4 Delhi Cantt
    6. Smt poonam SaloojaPrincipal KV Rohini Sec - 8
    7. Mr Pawan Sharma        VP, KV Vigyan Vihar Shift - 2
    8. Smt Anjalina BaddingHM  KV BSF Chhawala Cantt
    9. Sh Sujit Kumar    HM, KV INA
    ___________________
    _____________________________________________